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सफर - मौत से मौत तक….(ep-4)

नन्दू बिनोद को घर छोड़कर बहुत ही आदर से अंदर बैठाकर आया, सरला पड़ोसी से दो कुर्सी भी माँग लायी थी, तो बिनोद को चारपाई के पास कुर्सी में बिठाकर मम्मी को उनको पानी देने की बात बोलकर नंदू वापस रिक्शे की तरफ को चल पड़ा…

रिक्शे के पास बड़ा नंदू और यमराज की शर्त लगी थी, नंदू ने यमराज से एक सवाल किया था कि पहले कौन आएगा नंदू या होने वाले रिश्तेदार….

यमराज ने कहा था कि फल लेकर रिश्तेदार आ जाएंगे, लेकिन नंदू तो जानता था कि वो रिक्शे तक आ ही नही पाएंगे, क्योकि आना होता तो अब तक आ चुके होते, दर्शल बात यह थी कि वो रास्ता भटक चुके थे।

छोटा नंदू रिक्शे के पास पहले आया और बहुत देर इंतजार करने के बाद उन्हें ढूंढने निकल पड़ा।
एक तरफ गोविंद और त्रिलोक फल लेकर गली नम्बर दस पूछते पूछते गली नम्बर तीन पहुंच गए थे, दूसरी तरफ सारी मंडी नंदू ने छान मारी…. लेकिन वो दोनो नही मिले…. क्यो वो दोनो उस मंडी की दूसरी तरफ चले गए थे।

गोविंद ने अपने भाई त्रिलोक से कहा- "अरे यार! हम आये तो इसी रास्ते थे, और थोड़ी दूर जाते ही मंडी मिल गयी थी लेकिन अभी हम चलते चलते दो किलोमीटर तो आ ही गए होंगे, लेकिन ना गली नम्बर दस मिली, ना ही वो रिक्शे वाला।

"पता नही…. कैसे……ना जाने कैसे रास्ता भूल गया मैं….मैं तो याद करते हुए आ रहा था मंडी की तरफ……लेकिन मंडी के दो तीन चक्कर लगा दिए हमने, बस वही पर गड़बड़ हो गयी और गली का  मेन द्वार भूल गया।" त्रिलोक ने कहा।

"किसी से पूछते है, की गली नम्बर दस कहाँ है" गोविंद ने कहा।

तभी उन दोनों को कोई आदमी एक छोटी लड़की के साथ आता दिखाई दिया। ये आदमी और कोई नही तुलसी और चिंतामणि थे, तुलसी अपने पापा को बुलाने गयी थी,  दोनो बहुत जल्दी में थे और तेज तेज चल रहे थे।

तभी गोविंद ने चिंतामणि को पहचान लिया और चिल्लाते हुए बोला- "अरे चिंतामणि जी…. आप"

हंसते हुए चिंतामणि भी आगे आया और  पूछा- "अरे आप लोग आ रहे हो सुना तो बेटी बुलाने आ गयी मुझे"

"लेकिन अभी तो हम आपके घर पहुंचे भी नही थे, खबर पहले पहुंच गई…." गोविंद बोला।

"वो सब छोड़ो ये बताओ….आप इस तरफ कहाँ जा रहे है" चिंतामणि बोला।

"अच्छा हुआ आप लोग रास्ते मे मिल गए, वरना हम तो आज घूमते रह जाते…. बेटा और रिक्शे वाला भी परेशान हो गया होगा,कही हमे ढूंढने ना लगे हों"  त्रिलोक ने कहा।

"चलो फिर, हमें जल्दी जाना चाहिए," कहते हुए चिंतामणि जी आगे आगे चल पड़े, उनके पीछे गोविंद और फिर त्रिलोक और लास्ट में खुशी से झूमते हुए तुलसी….

तुलसी की खुशी के बहुत कारण थे, एक तो मेहमान आये थे मिठाई, और फ्रूट लेकर आएंगे, और उनके लिए खाना भी अच्छा बनेगा। और सबसे खुशी की बात उसकी नजर में ये थी कि जैसे आस पड़ोस में शादियां होती थी, सब नाचते थे, मजा आता था, वैसा ही मजा उनके घर मे भी आने की उम्मीद जगी थी। क्योकि सरला दिदी को देखने लड़के वाले आये थे।

चारो चलते चलते घर की तरफ जा रहे थे। तभी उनको ढूंढते ढूंढते नंदू भी उसी तरफ आ गया।

त्रिलोक और गोविंद ने नंदू को देख लिया था, वो कुछ बोलते की चिंतामणि पहले बोल पड़ा- "वो देखो, आपको ढूंढते हुए मेरा बेटा नंदू भी आ गया"

"ये रिक्शेवाला आपका बेटा है?" त्रिलोक ने सवाल किया।

"हां….मेरा बेटा है, क्यो उसने बताया नही आपको…." चिंतामणि ने कहा ही था कि नंदू भी वही पर रुक गया और रिक्शे को वापस मोड़कर खड़ी कर दी।

नंदू बहुत ही शर्मिंदा था। उसने उन दो मेहमानों के अब जाकर पैर छुए, और रिक्शे में बैठने का अनुग्रह किया, और बाबूजी और तुलसी को भी बैठने को कहा।

चारो रिक्शे में बैठ गए। रिक्शा धीरे धीरे घर की तरफ जाने लगी।

"बेटा! हमारा बिनोद कहाँ है" गोविंद ने सवाल किया।

"उन्हें मैं घर छोड़ आया हूँ" नंदू बोला।

नंदू बहुत ताकत लगाकर रिक्शे को चला रहा था, कभी कभी पैडल खींचने के लिए खड़ा तक होना पड़ रहा था।
ये सब देखकर चिंतामणि को चिंता हो रही थी,उसका बेटा बहुत वजन ढो रहा था, उसने रिक्शा रुकवाया और खुद उतर गया। और कहा- "तुम चलो मैं पैदल आता हूँ"

नंदू सच मे थक चुका था, इसलिए उसने दोबारा बाबूजी को बैठने को नही कहा उनकी आज्ञा का निर्विरोध पालन करते हुए थोड़ा हल्का महसूस करते हुए निकल पड़ा।

यमराज को ये बात समझ नही आयी उन्होंने नंदू अंकल से पूछ ही लिया-
"अरे अंकल, आपके बाबूजी क्यो उतर गए, और वो तो पैदल आ रहे है, जबकि उनको भी घर ही आना है।"

"एक बाब होने के नाते अपने बेटे के ऊपर के भार को हल्का करने के लिए उतरे है, जब तक सिर पर बाब का साया है तब तक इस रिक्शे के वजन की तरह जिम्मेदारियों का बोझ भी हल्का  रहता है, " नंदू ने यमराज के सवाल का जवाब दिया

यमराज  अब दोबारा कुछ नही बोला, बस कभी पीछे पैदल चलकर आ रहे नंदू के पिता को देखने लगा,जी बहुत तेज चलकर आने की कोशिश कर रहे थे। तो कभी नंदू को रिक्शे को चलाते हुए देख रहा था।

उधर बिनोद बैठा हुआ था, अकेले बैठा था, बहुत अजीब आलम था, पहले दिन ससुराल में इस तरह अकेले बैठा था, और घर मे बस सांस और होने वाली पत्नी थी,
बिनोद ने मन ही मन लड़की पसंद कर ली थी…. सरला थी सुंदर लड़की…. और जिस तरह की उसे चाहिए थी वैसे ही, कम बोलने वाली, घर संभालने वाली लड़की। माँ बाबूजी का ख्याल रखने वाली।

थोड़ी देर में गोविंद और त्रिलोक भी नंदू के साथ आ गया था और यमराज भी उनके साथ ही आ गया। जबकि नंदू अंकल पीछे अपने बाबूजी के साथ आ रहा था।

कितनी अजीब बात थी, उस वक्त नंदू पापा को पीछे छोड़ आया था, लेकिन आज खुद भी बुढ़ापे के दिन देख चुका था, शायद इसलिए बूढ़ा नंदू अपने ही उम्र के अपने बाबूजी के साथ ही आया। और सबसे मजेदार बात ये थी कि दोनो में से कोई असली नही है। एक अतीत की परछाई है तो एक नंदू का वर्तमान वाला भूत।

उधर यमराज सस्पेंस में था कि बिनोद नंदू की बहन सरला को शादी के लिए हां बोलेगा या नही, या फिर वो मान भी गया तो क्या गोविंद एयर त्रिलोक ये शादी होने देंगे।
यमराज को नंदू कहानी कुछ इस तरह दिखा रहा था जैसे अगले टीवी में सीरियल आते है, आगे क्या होगा कुछ नही बताते, ताकि हर कोई आगे देखने या सुनने को बेकरार रहे, वही बेकरारी यमराज में थी। क्योकि नंदू से अगर कुछ पूछता था तो वो साफ साफ बोल देता था -
"यामी बेटे! मेरे साथ रहेगा तो ऐसे ही देखने को मिलेगा, अगर आगे आगे बताता जाऊंगा तो मेरा एक बार और जिंदगी को जीने का चांस जो मुझे मिला है उसका तो कोई बेनिफिट नही रहेगा"

"हद है यार! आप रहने ही दो, मुझे आपसे अब और कोई उम्मीद ही नही है, पूरा सिलेबस दोबारा पढ़ना पढ़ रहा है" यमराज बोला।

"पूरी किताब पढ़ो ना! मास्टर माइंड की ख्वाहिश क्यो रखते हो, उसमे आपके हर सवाल का जवाब जरूर होता है, लेकिन सिर्फ याद करने के लिए, समझने के लिए तो किताब ही पढ़नी पड़ेगी"  नंदू अंकल बोला।

"हाँ हां, अब ज्ञान मत बांटो, देखो नंदू बिस्किट लेकर भी आ गया" यमराज बोला।

"नमकीन भी है उसमे, और एक बीड़ी का बंडल भी" नंदू अंकल ने कहा।

"बुढ़ापे में भी नजर इतनी तेज….क्या बात है नंदू अंकल" यमराज ने कहा।

"नजर तेज नही……. अच्छे से याद है मुझे, मैं ये बात आंख बन्द करके भी बता सकता था।" नंदू अंकल ने कहा।

"हां तो कांड आपके है, आपको याद नही होगा तो किसे होगा" यमराज बोला।

"इसे कांड नही , काम बोलते है, और घर के काम करना बुरी बात है क्या, दोनो बहनों की शादी के बाद तो घर के सारे काम मैंने ही किये थे" नंदू अंकल ने कहा।

"किये होंगे….मैं क्या करूँ" यमराज आज थोड़ा नाराज जैसा लग रहा था।

छोटे नंदू ने अभी बिस्किट नमकीन एक प्लेट में डाली और सरला चाय लेकर सभी मेहमानों के साथ आई, और बिस्किट लेकर नंदू भी आया। नंदू थोड़ा शर्मिंदा था। क्योकि उसे लगता था उसने गलती कर दी जो इनके सामने गरीबी का दुखड़ा रोया, क्या पता इसका असर दिदी की शादी में पड़ेगा।

असर तो बहुत बड़ा पड़ा था, लेकिन वो नंदू के फायदे में रहा। सबने आपसी चर्चा में शादी एकदम पक्की कर दि। और वो भी बिना की माँग के। उस समय मे दहेज प्रथा पूरी तरह खत्म नही हुआ था, वो जमाना ऐसा था कि लड़के वाले कुछ ऐसा बोलते थे- "लड़की आपकी सुंदर है, हमे तो पसंद है, अब शादी तो पक्की ही समझो, अब आपकी बेटी हमारी बेटी हो गयी……. वैसे आजकल सब अपनी लड़कियों को एक जोड़ा बिस्तर, एक जोड़े गहने और रसोई के कुछ बर्तन तो देते ही है लेकिन आजकल अलमारी का भी रिवाज जैसा हो गया है, हर लड़की अपने लिए अलमारी भी ला रही, बक्शे का रिवाज खत्म ही हो गया……हहहह
खैर इतना तो आप भी दे ही दोगे, "

ये एक अदा थी, एक अलग शैली की भाषा….जो हर किसी के समझ आती थी, और लड़की वाले पहले से जानते बहु थे कि इतना तो देने ही है, शायद इसलिए वो लड़की के पैदा होते ही ये टेंशन पालने लगते थे कि अब इतने सामान के लिए पैसे जोड़ने पड़ेंगे, पंद्रह से बीस साल के बीच मे जब भी किसी के घरवाले इतना दे सकने के काबिल हो जाते तो लड़की की शादी तय कर देते थे। और यही कारण भी रहा कि लड़कियों के पैदा होने के बाद इस डर से मार दिया जाने  लगा कि पहले इसे पालने पोसने में खर्चा करो उसके बाद इसकी शादी की चिंता, और दहेज की फिक्र, इससे अच्छा तो लड़का हो जाये और फिर लक्ष्मी आएगी, दहेज देना नही पड़ेगा जबकि बहुत सारे दहेज के साथ बहु आएगी।

बेटे के शादी में दहेज लेने की खुशी में वो भूल जाते थे कि इसी दहेज को देने के डर से उन्होंने जन्म लेते ही अपनी बेटी को मार दिया था।

लेकिन गोविंद और त्रिलोक की भावनाएं तो नंदू की बातों से पहले ही बदल चुकी थी। सोचकर तो वो भी बहुत कुछ आये थे लेकिन उस नन्हे से नंदू के आंखों में उसकी बहनों की शादी के सपने और परिवार की जिम्मेदारी के रूप में जलते दिए ने उनके दिल को मोम की तरह पिघला दिया था।

"अरे नही चिंतामणि जी, आपका नाम ही चिंता मणि है मतलब आपको चिंता करना मणा है।" हंसते हुए त्रिलोक बोला।

"मैं कुछ समझा नही…." नंदू के पापा ने कहा।

उन्हें समझाते हुए बिनोद बोला- "चाचाजी के कहने का मतलब मैं समझाता हूँ आपको, वो बात ये है ना बाबूजी, जैसे मेरे बाबूजी है वैसे ही आप हो, और हम आपको ज्यादा तकलीफ नही देना चाहते है, बस आपकी बेटी हमे मिल रही है, और क्या चाहिए…"

"हाँ लेकिन लड़की को कुछ तो देना ही पड़ता है ना, थोड़ा सामान जो रिवाज भी है और हमारी बिटिया का हक भी"  नंदू के पापा ने कहा।

सरला ध्यान से बाबूजी की तरफ देख रही थी, शायद आज उसे पहली बार एहसास हो रहा था कि हाँ बाबूजी सिर्फ शराब पीकर ही नही, बिना पिये भी हमसे प्यार करते है, इतनी गरीबी देखने के बाद जब बेटी के दहेज की बात आई तो उसे दहेज नही बेटी का हक बता रहे थे। लड़के वाले ही काले जिम्मेदार नही होते है दहेज लेने वालों में, कुछ लड़की वाले अपनी बेटी को खाली हाथ विदा नही करना चाहते। और उसका हक बोलकर दहेज देते भी है। लेकिन ये दहेज नही बाबूजी का प्यार था। उनकी परिश्रम की जमापूंजी थी।
और बेटी का जीवन उज्ज्वल और खुशहाल रहे ऐसे सपने थे, और उन्हें पूरा करने की जिद भी।

अब यमराज परेशान हो गया। और परेशान होकर नंदू अंकल से पूछता है।
- "यार आपके बाबूजी के पास लगता नही फूटी कौड़ी भी होगी, फिर वो मां क्यो नही जाते, जब उन्हें नही लेना तो कोई बात नही"

"मानते है या नही मानते ये तो आप खुद देख लीजिए, क्योकि अभी तक नंदू चुप है, थोड़ी देर में नंदू का मुंह खुलेगा, और फैसला भी नंदू का होगा……अफसोस आज तक है कि वो फैसला गलत था मेरा" नंदू अंकल ने कहा।

"कैसा फैसला……."यमराज ने पूछा।

"वो अगले एपिसोड में बताऊंगा" नंदू अंकल ने कहा।

"बस यही आदत….यही आदत आपकी खराब लगती है मुझे….ऐसा चलता रहा तो मैं वापस चले जाऊंगा"  यमराज ने गुस्से में कहा।

"मैं तो कब से कह रहा हूँ, वापस चले जाओ, मुझे शांति से जीने दो….लेकिन मानते कहाँ हो तुम" नंदू ने और जोर से डाँटा।

"हो गया हो गया….अब जोर से चिल्लाओ मत, मरने के बाद भी हार्टअटैक आ जायेगा….मेरी तो मजबूरी है देखना, अब देखना तो पड़ेगा ही ना, वरना ऊपर जाकर क्या जवाब दूँगा मैं" यमराज ने कहा।

अब दोनो ने वापस ध्यान नंदू के बालपन की ओर डाला।

कहानी जारी है


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2 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:21 PM

Good

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🤫

03-Sep-2021 05:31 PM

हहहाह मरने केबाद हार्ट अटैक आ सकता है... और यमराज की मजबूरी, बैठे बैठे नंदूके साथ पगला रहे है....अच्छी कहानी ...बढिया ताना बाना बुना है आपने...

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